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सतना: इंडोनेशिया के कलाकारों ने चित्रकूट में रामलीला नृत्य की दी प्रस्तुति


सतना चित्रकूट श्रीरामकथा के विविध प्रसंगों की लीला प्रस्तुतियों पर एकाग्र सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव का आयोजन पर श्रीराघव प्रयाग घाट, में किया जा रहा है। समारोह के दूसरे दिन स्वदेशी और विदेशी कला संस्कृति का दिखा गठजोड़ इंडोनेशिया से आए दल ने रामायण बैले “हनुमान दूत के रूप में” की प्रस्तुति दी। इंडोनेशिया के कलाकारों ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखते हुए पारंपरिक परिधानों के साथ इंडोनेशिया कलचर रामलीला की अनेकों लीला नृत्य कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की तपोस्थली मैं श्री राम वनवास चरित्र का वर्णन किया।  

इंडोनेशिया के कलाकारों ने भारत के चित्रकूट प्रवास पर राम दर्शन संग्रहालय पहुंच कर श्री राम जीवन पर आधारित कलाकृतियां और अद्भुत चित्रों के संग्रह को करीब से देखा और उपस्थित दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन से संग्रहालय के विषय पर संवाद किय इंडोनेशिया के कलाकारों ने रामायण बैले “हनुमान दूत के रूप में” कथा को प्रस्तुत किया। टाकसू आर्ट समूह के 9 कलाकारों ने अभिनय एवं 6 कलाकारों ने संगीत में सहभागिता की। बैले का निर्देशन चोकोरदा पुत्रा ने किया, वे बाली हिन्दू विश्वविद्यालय में लेक्चर भी हैं। चोकोरदा बताते हैं,

इस शैली की शुरुआत 1960 में हाई स्कूल ऑफ आर्ट, बाली से हुई थी। बाली में प्रतिदिन चक रामायण पर आधारित नाट्य व अन्य कार्यक्रम होते हैं। प्रतिदिन नेशनल टीवी पर भी इसका प्रसारण होता है। उन्होंने कहा कि अपने ग्रुप के साथ भारत के अयोध्या काशी बनारस गुजरात भोपाल और चित्रकूट में राम जी के जीवन चरित्र पर रामलीला नृत्य की प्रस्तुति देते हुए हम सभी को बेहद अच्छा लग रहा है राम जी ने वनवास के दौरान निशाचर संघार और तप किया है यह सिटी अपने आप में ही अद्भुत है और यहां का वातावरण बेहद सुखद है। 

अंतर्राष्ट्रीय रामायण की दूसरी प्रस्तुति में रंगरेज कला संस्थान, उज्जैन के कलाकारों ने ताड़का वध, अहिल्या-उद्धार, वाटिका प्रसंग, धनुष यज्ञ, रावण-बाणासुर संवाद, लक्ष्मण परशुराम संवाद का मंचन किया। राक्षसों से ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए गुरु विश्वामित्र दशरथ के दरबार में पहुंचते हैं। वे राम-लखन को साथ ले जाने की बात कहते हैं। दशरथ के मन में इसे लेकर संशय होता है। तब विश्वामित्र कहते हैं, सुनो अवधेश बेटे तुम्हारे नहीं है ये। ये हैं यज्ञप्रसादी, जिससे उत्पन्न हुए बेटे चार। उन्हीं में से मांगता तुमसे दो बेटे रक्षार्थ। यही है संकल्प तुम्हारा। भगवान राम विश्वामित्र की आज्ञा से ताड़का का वध करते हैं। इसके पश्चात वे अहिल्या का उद्धार करते हैं।   प्रस्तुति में आगे दिखाया गया कि भगवान श्रीराम, राजा जनक की नगरी में पहुंचते हैं। यहां वाटिका में पहली बार वे माता सीता को देखते हैं। राजा जनक विश्वामित्र को धनुष यज्ञ के आमंत्रित करते हैं।

उनकी मुलाकात दोनों सुकुमारों से होती है। वे उन्हें भी आमंत्रित करते हैं। अगले प्रसंग में दिखाया गया कि स्वयंवर में श्रीराम धनुष तोड़ देते हैं। शिव धनुष टूटने पर वहां परशुराम पहुंच जाते हैं। क्रोध में वे राजा जनक को ललकारते हुए कहते हैं, क्या तुम्हें ये ज्ञात नहीं है कि मेरी आज्ञा के बिना यूं क्षत्रियों को एकत्रित करना निषेध है। शिव धनुष जिसने भी तोड़ा है, वे मेरे सामने आए, अन्यथा मैं सभी का संहार कर दूंगा। श्री राम भगवान परशुराम से क्रोध को शांत करने का आग्रह करते हैं परशुराम क्रोध शांत कर प्रभु राम se शिव के द्वारा दिए गए धनुष की प्रतिभछा चढ़ने को बोल अपना भ्रम दूर करना चाहते हैं श्री राम के प्रतीक्षा चढ़ने पर परशुराम को धनुष प्रदान किया जाता है और उन्हें विश्वास हो जाता है कि राम ही श्री विष्णु नारायण है