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भारत–पाक सीमा संघर्ष के बाद DGMO स्तर की वार्ता: कूटनीति की नई पहल


भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और हाल ही में सीमा पर हुई झड़पों के बाद, 12 मई 2025 को दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMO) के बीच अहम वार्ता संपन्न हुई। यह वार्ता नियंत्रण रेखा (LoC) पर जारी संघर्षविराम उल्लंघनों और सीमा पार से हुई गोलाबारी की घटनाओं के बाद की गई है, जो पिछले चार दिनों से जारी थी।

संघर्ष की पृष्ठभूमि

8 मई 2025 को शुरू हुई झड़पों में जम्मू-कश्मीर के कई सीमावर्ती इलाकों—जैसे पुंछ, राजौरी और उड़ी सेक्टर—में गोलीबारी और मोर्टार हमलों की खबरें सामने आई थीं। इन संघर्षों में भारतीय सेना के दो जवान शहीद हुए, जबकि छह नागरिकों को भी चोटें आईं। वहीं पाकिस्तानी मीडिया ने भी अपने दो सैनिकों की मौत की पुष्टि की है।

यह संघर्ष करीब 80 घंटे तक जारी रहा, जिसके कारण सीमावर्ती गांवों में भय और अफरा-तफरी का माहौल बन गया था। कई परिवारों को अस्थायी शिविरों में शरण लेनी पड़ी।

DGMO स्तर की वार्ता

भारत और पाकिस्तान के बीच डीजीएमओ स्तर की यह वार्ता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित की गई। भारतीय पक्ष का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल एस. एन. चौधरी ने किया, जबकि पाकिस्तानी प्रतिनिधित्व मेजर जनरल तारिक अल्वी ने किया।

वार्ता के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित रहे:

  • संघर्षविराम समझौते (2003) का सख्ती से पालन।
  • सीमा पार घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों पर निगरानी बढ़ाने की प्रतिबद्धता।
  • फील्ड कमांडरों के बीच हॉटलाइन के माध्यम से नियमित संवाद।
  • स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय।

भारत का रुख

भारतीय सेना ने स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान को चेताया कि सीमा पर किसी भी तरह की उकसावे की कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। साथ ही यह भी कहा गया कि भारत शांति और स्थायित्व का पक्षधर है, लेकिन अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा।

पाकिस्तान का जवाब

पाकिस्तानी डीजीएमओ ने दावा किया कि गोलीबारी की शुरुआत भारत की ओर से हुई थी, लेकिन साथ ही वार्ता के माध्यम से तनाव कम करने की इच्छा भी जताई। पाकिस्तान ने भी संघर्षविराम का पालन करने और घातक हथियारों के इस्तेमाल से परहेज रखने का आश्वासन दिया।

विश्लेषकों की राय

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि DGMO स्तर की यह वार्ता “तनाव में राहत” लाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, जब तक जमीनी स्तर पर ठोस बदलाव नहीं होते, तब तक इसे स्थायी समाधान नहीं माना जा सकता।

पूर्व सेना अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा,

“यह वार्ता जरूरी थी, लेकिन अब हमें देखना होगा कि यह केवल शब्दों तक सीमित रहती है या वास्तव में कार्रवाई भी होती है।”


निष्कर्ष

भारत–पाक संबंधों में इस वार्ता को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक पहल माना जा रहा है। जहां एक ओर सीमा पर स्थिरता बहाल करने की उम्मीदें बढ़ी हैं, वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत अपनी सुरक्षा को लेकर किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं बरतेगा।