जीएसटी काउंसिल के नए फैसले पर विवाद, विपक्ष ने उठाए सवाल
जीएसटी काउंसिल की हालिया बैठक में पॉपकॉर्न और पुरानी कारों पर टैक्स बढ़ाने के फैसले ने राजनीतिक गलियारों में बहस छेड़ दी है। इस फैसले को लेकर विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे आम आदमी पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाला कदम करार दिया है।
पॉपकॉर्न और पुरानी कारों पर टैक्स का विवाद
बैठक के बाद जीएसटी काउंसिल ने पॉपकॉर्न और पुरानी कारों पर टैक्स दर में वृद्धि की घोषणा की। पॉपकॉर्न पर जीएसटी दर को 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया है। वहीं, पुरानी कारों पर टैक्स दर में भी संशोधन किया गया है, जिससे उनके दामों में बढ़ोतरी की संभावना है।
विपक्षी दलों की नाराजगी
विपक्षी दलों का कहना है कि ये फैसले मध्यम वर्ग और छोटे व्यापारियों पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे। कांग्रेस ने इस कदम को “अनावश्यक बोझ” बताया, जबकि अन्य क्षेत्रीय दलों ने इसे “आर्थिक असंतुलन बढ़ाने वाला” करार दिया है। आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि सरकार को पहले महंगाई पर नियंत्रण करना चाहिए, न कि जनता की जरूरत की चीजों पर टैक्स बढ़ाना।
सरकार का बचाव
सरकार की ओर से वित्त मंत्री ने इन बदलावों का बचाव करते हुए कहा कि जीएसटी दरों को संशोधित करने का उद्देश्य राजस्व को स्थिर रखना और कर चोरी पर अंकुश लगाना है। उन्होंने कहा कि नई दरें व्यापार और उपभोक्ता दोनों के हित में हैं।
विशेषज्ञों की राय
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि पॉपकॉर्न जैसी चीजों पर जीएसटी वृद्धि से मनोरंजन उद्योग पर असर पड़ सकता है, क्योंकि ये सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स की प्रमुख कमाई का जरिया हैं। वहीं, पुरानी कारों पर टैक्स बढ़ाने से ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी की आशंका जताई जा रही है।
जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर आम जनता के मिलेजुले प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोगों ने इसे सरकार का गलत निर्णय बताया, जबकि कुछ का कहना है कि ये कदम आवश्यक हो सकता है।
आगे की राह
विपक्ष ने जीएसटी काउंसिल के इस फैसले के खिलाफ आगामी संसद सत्र में मुद्दा उठाने की घोषणा की है। वहीं, सरकार ने संकेत दिए हैं कि इन दरों पर पुनर्विचार किया जा सकता है यदि इसके नकारात्मक प्रभाव दिखते हैं।
जीएसटी सुधार के नाम पर लिए गए इन फैसलों से एक बार फिर सरकार और विपक्ष के बीच तनाव बढ़ गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या समाधान निकलता है और क्या ये फैसले वाकई जनता के हित में साबित होंगे।