बिहार में ‘रघुपति राघव’ भजन पर विवाद: लोक गायिका को माफी मांगने पर मजबूर किया गया
बिहार में हाल ही में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में ‘रघुपति राघव राजा राम’ भजन गाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। यह कार्यक्रम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया था। इस घटना ने न केवल कलाकारों की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता पर भी बहस छेड़ दी है।
क्या है पूरा मामला?
कार्यक्रम के दौरान प्रसिद्ध लोक गायिका ने ‘रघुपति राघव राजा राम’ भजन प्रस्तुत किया। हालांकि, कुछ लोगों ने इसे “धार्मिक भावनाओं” के खिलाफ बताते हुए आपत्ति जताई। विवाद इतना बढ़ गया कि गायिका को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा।
धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता पर सवाल
इस घटना ने बिहार की सांस्कृतिक और धार्मिक सहिष्णुता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
- यह भजन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा रहा है और महात्मा गांधी के प्रिय भजनों में से एक है।
- इसे गाने पर विवाद खड़ा होना दिखाता है कि धार्मिक सहिष्णुता की भावना को कहीं न कहीं चुनौती मिल रही है।
कलाकारों की स्वतंत्रता पर असर
घटना ने कलाकारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार को लेकर चिंता बढ़ा दी है।
- लोक गायिका ने केवल एक भजन प्रस्तुत किया, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है।
- उनकी माफी मांगने की स्थिति ने कलाकारों को अपनी प्रस्तुति के दौरान अतिरिक्त सतर्क रहने के लिए मजबूर कर दिया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा को जन्म दिया।
- विपक्षी दलों ने इसे “अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला” बताया और सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए।
- वहीं, सत्तारूढ़ दल ने इसे व्यक्तिगत भावनाओं का मामला बताते हुए विवाद को अनावश्यक बताया।
समाज में सहिष्णुता की कमी
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवाद समाज में बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाते हैं।
- धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज को एकजुट करना होता है, लेकिन ऐसे विवाद हमें विभाजित करते हैं।
- शिक्षा और संवाद के माध्यम से इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है।
निष्कर्ष
‘रघुपति राघव राजा राम’ जैसे भजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी हैं। इन पर विवाद खड़ा होना भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को समझने में हमारी असमर्थता को दिखाता है।
यह समय है कि हम अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों को समझें और उनके प्रति सम्मान विकसित करें। कलाकारों को उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, और समाज को ऐसे मुद्दों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। इस घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि सहिष्णुता और आपसी समझदारी के बिना समाज में एकता संभव नहीं है।