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भारतीय परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. राजगोपाल चिदंबरम का निधन


भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के एक प्रमुख हस्ताक्षर, डॉ. राजगोपाल चिदंबरम का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे देश के परमाणु हथियार विकास में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिकों में से एक थे। उनका योगदान भारतीय विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में अमूल्य माना जाता है।

डॉ. चिदंबरम का जीवन परिचय

डॉ. राजगोपाल चिदंबरम का जन्म 11 नवंबर 1936 को चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में हुआ था। वे भौतिकी में स्नातक और पोस्ट-ग्रेजुएशन करने के बाद भारत के प्रतिष्ठित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) से जुड़े। उनकी वैज्ञानिक कुशाग्रता और शोध कार्यों ने उन्हें जल्दी ही भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग का प्रमुख वैज्ञानिक बना दिया।

परमाणु परीक्षणों में भूमिका

डॉ. चिदंबरम ने 1974 के पोखरण-I और 1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पोखरण-II परीक्षण को भारत के लिए एक मील का पत्थर माना जाता है। इन परीक्षणों ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

विशेषज्ञों का कहना है कि डॉ. चिदंबरम की रणनीतिक सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंचाया। पोखरण-II परीक्षण के दौरान उन्होंने वैज्ञानिक दल का नेतृत्व किया और सुनिश्चित किया कि परीक्षण सफल और सुरक्षित हो।

वैज्ञानिक उपलब्धियां

डॉ. चिदंबरम ने अपने करियर में कई वैज्ञानिक और तकनीकी प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व किया। उन्होंने न केवल परमाणु हथियारों के क्षेत्र में बल्कि ऊर्जा उत्पादन और रक्षा अनुसंधान में भी भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। वे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक के रूप में भी कार्यरत रहे।

उनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:

  • भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को आत्मनिर्भर बनाना।
  • अत्याधुनिक न्यूक्लियर रिएक्टर तकनीक का विकास।
  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में योगदान।

सम्मान और पुरस्कार

अपने योगदान के लिए डॉ. चिदंबरम को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और कई अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिक सम्मानों से नवाजा गया।

भारतीय विज्ञान समुदाय में शोक

डॉ. चिदंबरम के निधन से भारतीय विज्ञान और तकनीकी समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “डॉ. चिदंबरम का योगदान भारत के सामरिक और वैज्ञानिक विकास में अविस्मरणीय है। उनकी वैज्ञानिक सोच और नेतृत्व ने देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी कमी हमेशा खलेगी।”

परमाणु ऊर्जा आयोग के वर्तमान अध्यक्ष ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा, “डॉ. चिदंबरम का जाना विज्ञान क्षेत्र के लिए एक बड़ी क्षति है। वे एक सच्चे देशभक्त और महान वैज्ञानिक थे। उनका काम आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा।”

परमाणु सुरक्षा में योगदान

डॉ. चिदंबरम ने न केवल परमाणु हथियारों के विकास में बल्कि भारत की परमाणु सुरक्षा नीति को भी मजबूती प्रदान की। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारत की परमाणु शक्ति केवल आत्मरक्षा और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से इस्तेमाल हो।

उनके कार्यकाल के दौरान भारत ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ कई समझौते किए, जिससे भारत की परमाणु नीति को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली।

डॉ. चिदंबरम की विरासत

डॉ. राजगोपाल चिदंबरम की वैज्ञानिक विरासत भारत के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगी। उन्होंने अपने जीवन में जो तकनीकी प्रगति की नींव रखी, वह आने वाले वर्षों में भी भारत के वैज्ञानिक विकास को दिशा देती रहेगी।

उनकी प्रेरणादायक यात्रा यह दिखाती है कि किस प्रकार एक व्यक्ति अपने ज्ञान और समर्पण से पूरे देश के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। उनका जाना न केवल विज्ञान जगत बल्कि पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।