नागरिकता संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी: संवैधानिक वैधता पर बहस तेज
सुप्रीम कोर्ट में आज, 23 जनवरी 2025, को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रही। इस मामले में कई याचिकाकर्ताओं ने सीएए को संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून?
सीएए 2019 में पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है। इस कानून को लेकर विवाद तब खड़ा हुआ जब इसमें मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया।
याचिकाओं में क्या हैं तर्क?
सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दर्ज की गई याचिकाओं में इसे धर्म के आधार पर भेदभावपूर्ण बताया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। उनका दावा है कि नागरिकता देने का आधार धर्म नहीं होना चाहिए।
केंद्र सरकार का पक्ष
सरकार ने सीएए का बचाव करते हुए कहा है कि यह कानून ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने और धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को मदद देने के लिए बनाया गया है। सरकार का तर्क है कि यह कानून किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है और यह पूरी तरह से संविधान के अनुरूप है।
आज की सुनवाई का विवरण
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को अपनी दलीलें पेश करने का अवसर दिया। याचिकाकर्ताओं ने सीएए को भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को कमजोर करता है। वहीं, केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि यह कानून मानवता के सिद्धांतों पर आधारित है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कहा कि इसे सुनवाई के लिए प्राथमिकता दी जाएगी।
देशभर में असर
सीएए को लेकर देशभर में विभिन्न स्तरों पर बहस और विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। इस मामले का न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी व्यापक प्रभाव है।
आगे का रास्ता
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए अगली तारीख [अगली तारीख] निर्धारित की है। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाएगा।
निष्कर्ष
नागरिकता संशोधन कानून पर हो रही यह सुनवाई न केवल भारत के संविधान की व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों की रक्षा की दिशा में एक अहम कदम भी है। आने वाले दिनों में इस मामले का नतीजा भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।