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जामताड़ा के जंगलों में बढ़ती अवैध कटाई: वन्यजीवों के अस्तित्व पर मंडराया खतरा


झारखंड के जामताड़ा जिले के घने जंगलों में अवैध कटाई के बढ़ते मामले गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। तेजी से हो रही पेड़ों की कटाई न केवल पर्यावरण के लिए खतरा बन रही है, बल्कि जंगलों पर निर्भर रहने वाले वन्यजीवों के अस्तित्व को भी संकट में डाल रही है।

अवैध कटाई का कारण:
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, जंगलों में अवैध लकड़ी माफिया सक्रिय हैं, जो बहुमूल्य पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन और लकड़ी की बढ़ती मांग के कारण जंगलों का दोहन हो रहा है। इसके अलावा, निर्माण कार्य और लकड़ी के व्यापार के लिए अवैध कटाई को बढ़ावा मिल रहा है।

प्रभावित वन्यजीव:
जामताड़ा के जंगलों में बाघ, हिरण, भालू और कई पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। लेकिन जंगलों के लगातार घटते दायरे के कारण इन जीवों का प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है। वन्यजीव अब मानव बस्तियों की ओर जाने को मजबूर हो रहे हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।

पर्यावरणविदों की चिंता:
पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर अवैध कटाई पर जल्द रोक नहीं लगाई गई तो आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए खतरे का केंद्र बन सकता है। पेड़ों की कटाई से जलवायु परिवर्तन को भी बल मिल रहा है, जिससे वर्षा चक्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

सरकारी कदम और चुनौतियाँ:
राज्य सरकार ने अवैध कटाई रोकने के लिए वन विभाग को सतर्क किया है और विशेष गश्ती दल तैनात किए जा रहे हैं। इसके बावजूद जंगलों के दूरदराज इलाकों में मॉनिटरिंग की कमी और माफिया के नेटवर्क के कारण समस्या गंभीर बनी हुई है।

स्थानीय समुदाय की भूमिका:
पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों को जागरूक कर उन्हें वन संरक्षण अभियान से जोड़ा जा रहा है। कई गैर-सरकारी संगठन (NGO) जंगलों के महत्व पर शिक्षित करने और वृक्षारोपण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में सक्रिय हैं।

निष्कर्ष:
जामताड़ा के जंगलों की अवैध कटाई न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा कर रही है, बल्कि वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी बड़ा खतरा बन रही है। इस समस्या के समाधान के लिए सख्त कानून, जागरूकता अभियान और सामुदायिक भागीदारी की तत्काल आवश्यकता है, ताकि इन जंगलों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा जा सके।