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मद्रास HC ने FIR दर्ज करने का आदेश जारी तमिलनाडु के एक मंत्री पोनमुडी पर महिलाओं/धार्मिक समुदायों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने के आरोप पर


विवाद की शुरुआत

  • दिनांक एवं परिदृश्य:
    8 अप्रैल, 2025 को पोनमुडी ने विल्लुपुरम में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शैव व वैष्णव धर्म और महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने सेक्स वर्कर्स और हिंदू धार्मिक प्रतीकों का अनुचित रूप से समन्वयित संदर्भ देकर बोलना तेज़ किया, जिसे सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में कैद किया गया ।
  • पार्टी में कार्रवाई:
    11 अप्रैल को, मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने डॉ. पोनमुडी को DMK के उपाध्यक्ष पद से हटा दिया, लेकिन उन्हें मंत्री पद पर कायम रखा गया ।

⚖️ मद्रास HC की प्रतिक्रिया

  • कानूनी याचिका (PIL):
    वकील बी. जगन्नाथ ने उच्च न्यायालय में PIL दायर कर पोनमुडी की नफरत भरी, आपत्तिजनक और धार्मिक भावनाएं आहत करने वाली टिप्पणी के खिलाफ कार्यवाही की मांग की ।
  • Suo motu नोटिस:
    न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकतेश ने 17 अप्रैल को खुद से इस मामले को उठाया (suo motu), और चीफ जस्टिस से मामले की फाइल तैयार कराने और नोटिस जारी करने को कहा।
  • FIR दर्ज करने का आदेश:
    अदालत ने तमिलनाडु पुलिस को दो हफ्ते के भीतर—पहले 21 अप्रैल, फिर 23 अप्रैल तक—एक FIR दर्ज करने का निर्देश दिया। यदि पुलिस ने इस आदेश का पालन नहीं किया, तो HC खुद ऐसे अधिकारीयों के खिलाफ contempt proceedings कर सकती है ।
  • न्यायधीश का तर्क:
    न्यायमूर्ति वेंकतेश ने कहा: “जब सरकार दूसरों की नफ़रत भरी बोलियों को गंभीरता से लेती है, तो एक मंत्री की खुद की टिप्पणियों पर भी समान कार्यवाही होना चाहिए।”
    उन्होंने स्पष्ट किया कि “कानून सबके लिए बराबर है।”
  • आपत्तिजनक टिप्पणी की प्रकृति:
    HC ने कहा कि पोनमुडी की टिप्पणियाँ ना केवल महिलाओं की गरिमा को आहत करती हैं, बल्कि शैव और वैष्णव दोनों सम्प्रदायों की धार्मिक भावनाओं को भी निशाना बनाती हैं; यह prima facie hate speech है ।

📌 विस्तृत घटनाक्रम

घटनाविवरण
8 अप्रैलविल्लुपुरम में सार्वजनिक कार्यक्रम—आपत्तिजनक भाषण
11 अप्रैलDMK उपाध्यक्ष पद से अधिकारिक पदों पर क्यों कार्रवाई
17 अप्रैलHC ने नोटिस जारी की और FIR न होने पर contempt का आह्वान
21–23 अप्रैलFIR दर्ज करने की अंतिम समय सीमा

🏛️ राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

  • दूसरी पार्टियों की प्रतिक्रिया:
    BJP सहित कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर मंत्री के खिलाफ न्यायपालिका द्वारा सख्त कदम की मांग की।
  • सदी पर्यटन पर पारदर्शिता:
    उच्च न्यायालय ने यह संकेत दिया कि राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस या प्रशासन शिथिल हो सकता है; इसलिए न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है।
  • आपत्तिजनक भाषण की समीक्षा:
    HC ने स्पष्ट किया कि वोट-बैंक के नाम पर धर्म या महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा स्वीकार्य नहीं—संवैधानिक कार्यवाही के दायरे में होना चाहिए।