मोहन भागवत का बयान: धर्मों के प्रति सम्मान की अपील, मंदिर-मस्जिद विवाद पर विचार व्यक्त
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में दिए गए अपने बयान में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने सभी धर्मों और समाज के सभी वर्गों के प्रति सम्मान बनाए रखने की अपील की। उनके इस बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस को जन्म दे दिया है।
क्या कहा मोहन भागवत ने?
एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा, “हर धर्म और समाज का अपना विशेष महत्व और स्थान है। हमें एक-दूसरे के विश्वास का सम्मान करना चाहिए। विवादों को बातचीत और समझदारी के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता भारत की ताकत है और इसे नकारात्मक मुद्दों में नहीं बदलना चाहिए। भागवत ने यह भी कहा कि समाज को एकजुट होकर राष्ट्रीय हित के लिए कार्य करना चाहिए।
राजनीतिक हलकों में बहस
भागवत के बयान को राजनीतिक दृष्टिकोण से अलग-अलग तरह से देखा जा रहा है।
- सत्तारूढ़ दल ने उनके बयान का स्वागत करते हुए कहा कि यह समाज में शांति और एकता स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
- विपक्षी दलों ने इस बयान को “सामाजिक और धार्मिक तनाव” को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं बताया और संघ पर पुराने विवादित मुद्दों को जीवित रखने का आरोप लगाया।
सामाजिक प्रभाव
इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कई लोगों ने इसे सकारात्मक पहल बताया, जबकि कुछ ने इसे सांप्रदायिक विवादों से बचने के लिए दिया गया “राजनीतिक बयान” करार दिया।
मंदिर-मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि
भारत में मंदिर-मस्जिद विवाद कोई नया मुद्दा नहीं है। अयोध्या विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के माध्यम से हो चुका है, लेकिन कुछ अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद जारी हैं। भागवत का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब देश में सांप्रदायिक सौहार्द को मजबूत करने की आवश्यकता है।
संघ का दृष्टिकोण
RSS लंबे समय से “एकात्म मानववाद” और “वसुधैव कुटुंबकम्” के विचार पर जोर देता रहा है। भागवत के बयान को संघ के इस दृष्टिकोण के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है, जो विविधता में एकता को प्राथमिकता देता है।
निष्कर्ष
मोहन भागवत का यह बयान केवल एक अपील नहीं, बल्कि भारतीय समाज को समावेशिता और सह-अस्तित्व की दिशा में प्रेरित करने का प्रयास है। हालांकि, इसे सही अर्थों में लागू करने के लिए सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों को समान रूप से प्रयास करना होगा। यह बयान भविष्य में धार्मिक और सांप्रदायिक विवादों को कम करने में कितना प्रभावी होगा, यह समय ही बताएगा।