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पद्मश्री भरतनाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रन से विशेष बातचीत


पद्मश्री भरतनाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रन से दूरदर्शन की विशेष बातचीत  \”शास्त्रीय संगीत और नृत्य भारत की नींव में, इसका यथोचित प्रसार आवश्यक\”   बीकानेर। पद्मश्री सम्मानित भरतनाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रन राजस्थान दिवस पर विशेष प्रस्तुति देने अपनी शिष्यों के साथ बीकानेर पधारी।

इस अवसर पर राजस्थान की कला और संस्कृति को महत्ती बताते हुए उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को सबसे पहले अपने स्थानीय लोक कलाओं और संगीत नृत्य से जुड़ना चाहिए। 5 वर्ष की उम्र से भरतनाट्यम सीख रही गीता ने 12 वर्ष की उम्र में अरंगेत्रम किया।भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में गीता चन्द्रन के योगदान के लिए 2007 में चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया।

गीता चन्द्रन को वर्ष 2016 के लिए भरतनाट्यम के लिए प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।  उन्होंने दूरदर्शन को दिए विशेष साक्षात्कार में भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि अनुशासन और साधना का माध्यम है, जो जीवन जीने का तरीका सिखाता है।

गीता चंद्रन ने नाट्यशास्त्र से लेकर भारतीय संगीत परंपरा तक विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों को बचपन से ही साधना का महत्व समझाना आवश्यक है। यह केवल कला नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी आधार है।  उन्होंने वर्तमान समय में शास्त्रीय कलाओं के सीमित होते दायरे पर चिंता व्यक्त की और इसके व्यापक प्रसार पर बल दिया।

विशेष रूप से गणित और सांख्यिकी जैसे विषयों में दक्ष होने के साथ-साथ मीडिया जगत में भी पहचान बना चुकी गीता चंद्रन ने कहा कि भारतीय नृत्य शैलियों का वैज्ञानिक आधार है, जो संपूर्ण व्यक्तित्व को विकसित करने में सहायक है। भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रचार-प्रसार की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि नवीन पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत और नृत्य से जोड़ने के लिए शिक्षण संस्थानों में इसे अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए।