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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश की आलोचना की जिसमें राष्ट्रपति को गवर्नर द्वारा भेजे गए विधेयकों पर शीघ्र निर्णय लेने का कहा गया


विवाद की पृष्ठभूमि

  • 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक तीन-सदस्यीय बेंच ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति (Assent) के पास भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने भीतर निर्णय लेना होगा।
  • अदालत ने साथ ही निर्देश दिया कि यदि राष्ट्रपति इस अवधि में प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, तो विधेयक स्वतः ही कानून बन जाएगा ।

⚠️ उपराष्ट्रपति का तीखा रुख

  • 17 अप्रैल, राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि: “हमें न्यायपालिका से लोकतंत्र नहीं चाहिए, जहां न्यायाधीश ‘सुपर संसद’ बन जाएँ” ।
  • उन्होंने अनुच्छेद 142 पर भी कटाक्ष किया, जिसे उन्होंने लोकतांत्रिक ताकतों पर “परमाणु मिसाइल” बताया — “वह 24×7 न्यायपालिका के हाथ में है” ।
  • उन्होंने सवाल उठाया: “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहाँ आप राष्ट्रपति को निर्देश दें… संविधान में ऐसा अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं दिया गया” ।
  • कायम रहा कि राष्ट्रपति का स्थान संविधान में बहुत ऊँचा है, और उस पर निर्देश हवा-हवाई नहीं छोड़े जा सकते ।

🧭 संवैधानिक बहस

  • धनखड़ ने कहा कि कीर्ति प्रदान करने की मौलिक शक्ति न्यायपालिका को केवल अनुच्छेद 145(3) के अंतर्गत व्याख्या करने की है और वह भी पांच या अधिक जजों की पीठ से ही संभव है ।
  • उनका तर्क रहा कि न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका या पार्लियामेंट पर निर्देश देना इसकी सीमाओं का विस्तार हो सकता है।

🏛️ प्रतिक्रियाएं और प्रतिध्वनि

  • DMK, कांग्रेस, TMC, और वरिष्ठ अधिवक्ता जैसे Kapil Sibal ने धनखड़ पर तीखी प्रतिक्रिया दी। DMK ने उनके बयान को “अनैतिक” करार दिया और न्यायपालिका की “अर्थिक” भूमिका से चेतावनी।
  • Kapil Sibal ने यह कहा कि अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को “complete justice” सुनिश्चित करने की शक्ति देता है, और President‑Governor पर समयसीमा आधारित निर्देश में कुछ भी अवैध नहीं ।

🧮 निष्कर्ष

दृष्टिकोणप्रमुख बातें
उपराष्ट्रपति का कहनान्यायपालिका ‘सुपर संसद’ बनकर सीमाएं पार कर रही है; अनुच्छेद 142 लोकतंत्र के खिलाफ ‘परमाणु मिसाइल’
न्यायपालिका का रुखसमयबद्ध निर्णय से विधानसभा धाराक्रम बाधित नहीं होगा; न्याय की प्रक्रिया सुनिश्चित होगी
राजनीतिक प्रतिक्रियाविपक्ष ने कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया; न्यायपालिका की भूमिका की पुनः पुष्टि की

यह पुरजोर बहस हमारे लोकतंत्र में नियंत्रण और संतुलन (checks and balances) की बुनियादी अवधारणा पर प्रकाश डालती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और संसद की भूमिकाएं किस तरह संतुलित होनी चाहिए।