भारत की तालिबान और मालदीव से बातचीत पर चीन-पाक को मिर्ची क्यों लगी? जानिए इसके कूटनीतिक मायने
भारत ने हाल ही में तालिबान और मालदीव के साथ कूटनीतिक बातचीत की है, जिसने चीन और पाकिस्तान को बेचैन कर दिया है। इस बातचीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक बड़ी कूटनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है। चीन और पाकिस्तान की इस पर तीखी प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक है, क्योंकि यह दोनों देश दक्षिण एशिया में भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत को लेकर पहले से ही चिंतित हैं।
तालिबान के साथ भारत की बातचीत का महत्व
अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद भारत ने शुरू में सतर्क रुख अपनाया था। लेकिन हाल ही में भारतीय प्रतिनिधियों और तालिबान के बीच बातचीत के कई दौर हुए हैं। माना जा रहा है कि भारत अफगानिस्तान में अपनी खोई हुई कूटनीतिक पकड़ को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
तालिबान से बातचीत के जरिए भारत अफगानिस्तान में अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों को सुरक्षित करना चाहता है। अफगानिस्तान में स्थिरता सुनिश्चित करना भारत के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक अस्थिर अफगानिस्तान पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है, जिसका सीधा असर भारत की सुरक्षा पर पड़ सकता है।
मालदीव के साथ कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करना
मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिए एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है। चीन पिछले कुछ वर्षों से मालदीव में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में भारत की मालदीव के साथ बातचीत को चीन के लिए एक झटका माना जा रहा है।
मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को चीन समर्थक माना जाता है। लेकिन भारत ने इस स्थिति को संभालते हुए मालदीव के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाए रखने की दिशा में काम किया है। मालदीव में भारत का प्रभाव सुनिश्चित करना हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।
चीन और पाकिस्तान क्यों हैं चिंतित?
चीन और पाकिस्तान दोनों ही भारत की इन कूटनीतिक गतिविधियों को अपने लिए खतरा मानते हैं। चीन की “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) परियोजना के तहत वह दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान पहले से ही चीन का करीबी सहयोगी है और अफगानिस्तान में भी चीन अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।
भारत का तालिबान और मालदीव के साथ बातचीत करना चीन और पाकिस्तान की इन योजनाओं के लिए एक बड़ा झटका है। भारत की कूटनीतिक सक्रियता से यह साफ हो गया है कि वह दक्षिण एशिया में चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने के लिए रणनीतिक कदम उठा रहा है।
भारत की कूटनीतिक नीति में बदलाव
पिछले कुछ वर्षों में भारत की कूटनीतिक नीति में बड़ा बदलाव देखा गया है। अब भारत केवल अपने सीमित हितों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है। भारत अब उन देशों के साथ भी संवाद करने को तैयार है, जिनसे उसके संबंध पहले तनावपूर्ण रहे हैं।
तालिबान के साथ बातचीत इसका एक उदाहरण है। भारत ने यह समझ लिया है कि अफगानिस्तान की स्थिरता उसके लिए महत्वपूर्ण है और इसके लिए तालिबान के साथ संवाद करना आवश्यक है।
चीन और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
चीन और पाकिस्तान दोनों ही भारत की इन कूटनीतिक गतिविधियों से परेशान हैं। पाकिस्तान ने भारत और तालिबान के बीच बातचीत पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पाकिस्तानी मीडिया में इसे भारत की “खतरनाक कूटनीतिक चाल” बताया गया है।
वहीं, चीन ने भी मालदीव के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियों पर चिंता जताई है। चीन मालदीव में अपने निवेश के जरिए वहां अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत की सक्रियता ने चीन की इन योजनाओं पर पानी फेर दिया है।
भविष्य की कूटनीतिक दिशा
भारत की यह कूटनीतिक पहल बताती है कि वह अब दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रहा है। भारत की कोशिश है कि वह अपने पड़ोस में किसी भी देश को चीन या पाकिस्तान के प्रभाव में न जाने दे।
अफगानिस्तान में भारत के पुनर्निर्माण प्रयास और मालदीव में कूटनीतिक सक्रियता आने वाले दिनों में भारत की कूटनीति के महत्वपूर्ण हिस्से होंगे। यह स्पष्ट है कि भारत अब अपनी कूटनीतिक नीति में बदलाव कर चुका है और वह अपने हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने को तैयार है।
निष्कर्ष
भारत की तालिबान और मालदीव से बातचीत को चीन और पाकिस्तान एक चुनौती के रूप में देख रहे हैं। भारत की यह कूटनीतिक पहल न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को रोकने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।